कोर्ट लगाकर देवी-देवताओं को मिली सजा

2 राज्यों की सीमा पर जात्रा छत्तीसगढ़ संवाददाता धमतरी, 1 सितंबर। धमतरी में शनिवार को कोर्ट लगाकर देवी-देवताओं को सजा दी गई। जिले के कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देवी-देवताओं की न्यायाधीश भंगा राव माई की जात्रा होता है। भादो महीने में अदालत लगी। गलती करने वाले देवी-देवताओं को सजा दी गई। इस जात्रा में 20 कोस बस्तर और 7 पाली ओडिशा सहित 16 परगना सिहावा के देवी-देवता शामिल होते हैं। वे यहां न्यायालयीन प्रक्रिया से गुजरते हैं। ये आदिवासी देवी-देवताओं का कोर्ट है। भंगा राव माई आदिवासी देवी-देवताओं की प्रमुख हैं। ये अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसमें सभी समुदाय और वर्गों की आस्था जुड़ी है। कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह जात्रा पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न हुई। इस जगह पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है। मान्यता है कि भंगा राव माई की अनुमति के बिना देवी-देवता भी कोई काम नहीं कर सकते। अगर देवी-देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं, तो शिकायत के आधार पर उन्हें भी सजा सुनाई जाती है। प्रक्रिया के दौरान देवी-देवताओं को भी कटघरे में खड़ा किया जाता है। शैतान और देवी-देवताओं की शिनाख्त जात्रा में गांवों से आए शैतान, देवी और देवताओं की शिनाख्त की जाती है। इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाई नुमा गहरे गड्ढे के किनारे फेंक दिया जाता है। इसे ग्रामीण कारागार (जेल) कहते हैं। बताया गया कि देवी-देवताओं के केस की सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं. आरोप सिद्ध होने पर सजा सुनाई जाती है। गांववालों ने बताया कि इस साल की जात्रा इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देव ने अपना चोला बदला है। गांव की हर विपदा के लिए देवी-देवताओं को माना जाता है जिम्मेदार पुजारियों के मुताबिक गांव में आई हर विपदा या कष्ट के लिए यहां के देवी-देवताओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। लोगों का कहना है कि वे पूरे मन से इनकी उपासना करते हैं और अगर वे उनके कष्ट को दूर नहीं करें, तो माना जाता है कि उन्होंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, ऐसे में न्यायाधीश भंगा राव माई उन्हें सजा सुनाती हैं। साल में एक बार लगने वाले भंगा राव माई की जात्रा में ग्रामीण देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी, मुर्गी, लाट, बैरंग, डोली, नारियल, फूल, चावल लेकर पहुंचते हैं।

कोर्ट लगाकर देवी-देवताओं को मिली सजा
2 राज्यों की सीमा पर जात्रा छत्तीसगढ़ संवाददाता धमतरी, 1 सितंबर। धमतरी में शनिवार को कोर्ट लगाकर देवी-देवताओं को सजा दी गई। जिले के कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देवी-देवताओं की न्यायाधीश भंगा राव माई की जात्रा होता है। भादो महीने में अदालत लगी। गलती करने वाले देवी-देवताओं को सजा दी गई। इस जात्रा में 20 कोस बस्तर और 7 पाली ओडिशा सहित 16 परगना सिहावा के देवी-देवता शामिल होते हैं। वे यहां न्यायालयीन प्रक्रिया से गुजरते हैं। ये आदिवासी देवी-देवताओं का कोर्ट है। भंगा राव माई आदिवासी देवी-देवताओं की प्रमुख हैं। ये अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसमें सभी समुदाय और वर्गों की आस्था जुड़ी है। कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई में यह जात्रा पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न हुई। इस जगह पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है। मान्यता है कि भंगा राव माई की अनुमति के बिना देवी-देवता भी कोई काम नहीं कर सकते। अगर देवी-देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते हैं, तो शिकायत के आधार पर उन्हें भी सजा सुनाई जाती है। प्रक्रिया के दौरान देवी-देवताओं को भी कटघरे में खड़ा किया जाता है। शैतान और देवी-देवताओं की शिनाख्त जात्रा में गांवों से आए शैतान, देवी और देवताओं की शिनाख्त की जाती है। इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाई नुमा गहरे गड्ढे के किनारे फेंक दिया जाता है। इसे ग्रामीण कारागार (जेल) कहते हैं। बताया गया कि देवी-देवताओं के केस की सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं. आरोप सिद्ध होने पर सजा सुनाई जाती है। गांववालों ने बताया कि इस साल की जात्रा इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देव ने अपना चोला बदला है। गांव की हर विपदा के लिए देवी-देवताओं को माना जाता है जिम्मेदार पुजारियों के मुताबिक गांव में आई हर विपदा या कष्ट के लिए यहां के देवी-देवताओं को ही जिम्मेदार माना जाता है। लोगों का कहना है कि वे पूरे मन से इनकी उपासना करते हैं और अगर वे उनके कष्ट को दूर नहीं करें, तो माना जाता है कि उन्होंने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, ऐसे में न्यायाधीश भंगा राव माई उन्हें सजा सुनाती हैं। साल में एक बार लगने वाले भंगा राव माई की जात्रा में ग्रामीण देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी, मुर्गी, लाट, बैरंग, डोली, नारियल, फूल, चावल लेकर पहुंचते हैं।