प्रशासन ने नहीं सुनी तो धनगोल के ग्रामीणों ने खुद ही बना ली जुगाड़ की पुलिया

गांव वालों ने 100 -100 चंदा जोडक़र काम शुरू किया छत्तीसगढ़ संवाददाता बीजापुर, 9 जुलाई। जिले के भोपालपटनम ब्लॉक के धनगोल गांव के ग्रामीणों ने एक मिसाल पेश की है। ग्रामीण लगातार प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से पुलिया की मांग करते रहे, लेकिन किसी ने भी इनकी नहीं सुनी, तब जाकर ग्रामीणों का सब्र टूटा और गांव में ही लोगों ने 100 - 100 रुपये चंदा जोडक़र मशीनरी लगाई और ताड़ के तनों से ध्वस्त हुए पुलिये पर रपटा बनाना शुरू कर दिया। गांव वालों का दावा है कि यह रपटा तीन दिनों में बनकर तैयार हो जाएगा। हालांकि यह रपटा वैकल्पिक है, इस रपटे से पैदल व दो पहिया वाहन वाले ही पार हो सकेंगे। बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लॉक के धनगोल पंचायत के ग्रामीण प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से एक अदद पुलिया की फरियाद करते थक चुके थे। तब ग्रामीण प्रशासन से उम्मीद छोड़ बारिश में पेश आने वाली कठिनाईयों से बचने श्रमदान के बूते जुगाड़ की पुलिया को आकार देने में व्यस्त हो गए। नेशनल हाईवे से महत 3 किमी दूर धनगोल गांव को जोड़ती कच्ची सडक़ में बनी यह पुलिया करीब पांच साल पहले ढह गई थी। जिसके चलते बारिश के दिनों में उफनते नाले से गांव वालों की मुश्किलें बढ़ जाती थी। 50 परिवारों तक ना तो एंबुलेंस पहुंच पाती थी और न ही दुपहिया वाहन से नेशनल हाईवे तक पहुंचा जा सकता था। बारिश के मौसम में पुलिया के अभाव में गांव का जिला मुख्यालय से संपर्क लगभग टूट ही जाता था। धनगोल गांव के सरपंच नागैया समेत ग्रामीणों का कहना है कि इस परेशानी से निजात पाने दफतरों से लेकर जनप्रतिनिधियों से लगातार गुहार लगाते रहें, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी।चुनाव के वक्त भी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी, कार्यकर्ता पहुंचे, उनसे बारम्बार मिन्नतें की गई, भरोसा मिला कि चुनाव जीतते पहली प्राथमिकता पुलिया का निर्माण कराया जाएगा। चुनाव खत्म हो गए, लेकिन आश्वासन के सिवाए उन्हें हासिल कुछ नहीं हुआ। सरकारी दफ्तर से लेकर विधायक तक मिन्नतें कर जब हासिल कुछ नहीं हुआ तो गांव वालों का सब्र टूट गया और तय हुआ कि प्रशासन हो चाहे नेता, इनसे उम्मीद रखने से बेहतर अपनी परेशानी का हल खुद निकालने का निर्णय गांव वालों ने लिया। सहमति बनी और खुदाई के लिए टैक्टर आदि मशीनरी को काम पर लगाने गांव वालों ने 100-100 रूपए चंदा जोड़ा।वैकल्पिक व्यवस्था में ध्वस्त पुलिया पर रपटे की योजना बनाई गई। जिसमें गांव वालों ने इको फ्रेंडली तकनीक को आजमाया। इलाके में ताड़ वृक्षों की बहुलता के मद्देनजर वृक्ष के तनों के सहारे रपटे को आकार देना शुरू किया। गांव वालों का दावा है कि तीन दिन के भीतर उनकी जुगाड़ की पुलिया बनकर तैयार हो जाएगी। हालांकि यह उतनी टिकाउ नहीं होगी कि इस पर से टैक्टर या चार पहिया वाहन गुजर सके। एक मोटरसाइकिल और पैदल चलकर ही लोग पार हो पाएंगे।

प्रशासन ने नहीं सुनी तो धनगोल के ग्रामीणों ने खुद ही बना ली जुगाड़ की पुलिया
गांव वालों ने 100 -100 चंदा जोडक़र काम शुरू किया छत्तीसगढ़ संवाददाता बीजापुर, 9 जुलाई। जिले के भोपालपटनम ब्लॉक के धनगोल गांव के ग्रामीणों ने एक मिसाल पेश की है। ग्रामीण लगातार प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से पुलिया की मांग करते रहे, लेकिन किसी ने भी इनकी नहीं सुनी, तब जाकर ग्रामीणों का सब्र टूटा और गांव में ही लोगों ने 100 - 100 रुपये चंदा जोडक़र मशीनरी लगाई और ताड़ के तनों से ध्वस्त हुए पुलिये पर रपटा बनाना शुरू कर दिया। गांव वालों का दावा है कि यह रपटा तीन दिनों में बनकर तैयार हो जाएगा। हालांकि यह रपटा वैकल्पिक है, इस रपटे से पैदल व दो पहिया वाहन वाले ही पार हो सकेंगे। बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लॉक के धनगोल पंचायत के ग्रामीण प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से एक अदद पुलिया की फरियाद करते थक चुके थे। तब ग्रामीण प्रशासन से उम्मीद छोड़ बारिश में पेश आने वाली कठिनाईयों से बचने श्रमदान के बूते जुगाड़ की पुलिया को आकार देने में व्यस्त हो गए। नेशनल हाईवे से महत 3 किमी दूर धनगोल गांव को जोड़ती कच्ची सडक़ में बनी यह पुलिया करीब पांच साल पहले ढह गई थी। जिसके चलते बारिश के दिनों में उफनते नाले से गांव वालों की मुश्किलें बढ़ जाती थी। 50 परिवारों तक ना तो एंबुलेंस पहुंच पाती थी और न ही दुपहिया वाहन से नेशनल हाईवे तक पहुंचा जा सकता था। बारिश के मौसम में पुलिया के अभाव में गांव का जिला मुख्यालय से संपर्क लगभग टूट ही जाता था। धनगोल गांव के सरपंच नागैया समेत ग्रामीणों का कहना है कि इस परेशानी से निजात पाने दफतरों से लेकर जनप्रतिनिधियों से लगातार गुहार लगाते रहें, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी।चुनाव के वक्त भी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी, कार्यकर्ता पहुंचे, उनसे बारम्बार मिन्नतें की गई, भरोसा मिला कि चुनाव जीतते पहली प्राथमिकता पुलिया का निर्माण कराया जाएगा। चुनाव खत्म हो गए, लेकिन आश्वासन के सिवाए उन्हें हासिल कुछ नहीं हुआ। सरकारी दफ्तर से लेकर विधायक तक मिन्नतें कर जब हासिल कुछ नहीं हुआ तो गांव वालों का सब्र टूट गया और तय हुआ कि प्रशासन हो चाहे नेता, इनसे उम्मीद रखने से बेहतर अपनी परेशानी का हल खुद निकालने का निर्णय गांव वालों ने लिया। सहमति बनी और खुदाई के लिए टैक्टर आदि मशीनरी को काम पर लगाने गांव वालों ने 100-100 रूपए चंदा जोड़ा।वैकल्पिक व्यवस्था में ध्वस्त पुलिया पर रपटे की योजना बनाई गई। जिसमें गांव वालों ने इको फ्रेंडली तकनीक को आजमाया। इलाके में ताड़ वृक्षों की बहुलता के मद्देनजर वृक्ष के तनों के सहारे रपटे को आकार देना शुरू किया। गांव वालों का दावा है कि तीन दिन के भीतर उनकी जुगाड़ की पुलिया बनकर तैयार हो जाएगी। हालांकि यह उतनी टिकाउ नहीं होगी कि इस पर से टैक्टर या चार पहिया वाहन गुजर सके। एक मोटरसाइकिल और पैदल चलकर ही लोग पार हो पाएंगे।