लघु वनोपज का संरक्षण-संवर्धन, सामूहिक विपणन पर कार्यशाला

छत्तीसगढ़ संवाददाता महासमुंद,19 फरवरी। ग्राम पंचायत आमाकोनी में प्रेरक समिति महासमुंद यूनिट द्वारा लघु वनोपज का संरक्षण संवर्धन एवं सामूहिक विपणन पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम समन्वयक हेमलता राजपूत ने बताया कि इस कार्यक्रम में कुल 20 गांव से 58 महिलाओं ने भाग लिया। प्रशिक्षण में मुख्य रूप से यह बताया गया कि हम छग के गांवों में रहते हैं। जहां प्रकृति द्वारा प्रदत्त वनोपज वन संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यह नवोपज गांवों के आदिवासी परिवार से लेकर सभी अन्य समुदाय के लोगों के लिए साल भर में छह महीने के लिए आय का मुख्य स्रोत है। लेकिन कई बार हम अधिक पाने के चक्कर में पूरे पेड़ पौधे को पूरा नष्ट कर डालते हैं। यह आदत हमारे प्राकृतिक संसाधनों का विनाश कर देती है। इसका प्रभाव सभी क्षेत्रों में पड़ता है। कार्यक्रम में उपस्थित मास्टर ट्रेनर श्रीमती दीवान, मनोरंजन ने वन अधिकार अधिनियम 2005 द्वारा प्रदत्त अधिकार सामुदायिक वन अधिकार और सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। बताया कि यह सभी अधिकार कानूनी तौर पर सीएफआर दावा जमा करना, अधिकार लेना और अपने वन संपत्ति का संरक्षण संवर्धन समुदाय द्वारा किया जाना वर्णित है। ऐसे में हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा करें। कार्यक्रम में उपस्थित प्रेरक समिति प्रमुख रामगुलाल सिन्हा ने लघु वनोपज की कैसे संरक्षण संवर्धन और सामूहिक विपणन व्यवस्था पर कार्य करें इस पर विस्तारपूर्वक जानकारी दिया गया है कि वर्तमान सरकार एवं पूर्व सरकार द्वारा इस सभी पर सरकारी मूल्य भी तय किया गया और लोगों को अलग-अलग वन संपदा पर उसका मूल्य दे रहा है। अगली कड़ी में उन्हें बताया गया कि जंगलों से मिलने वाले फलों का समय से पहले तोडऩा मुख्य रूप से आगामी समय पेड़ों के विस्तार को रोकता है। जैसे आम, चार, भुंईआवला, तेन्दुफल, भेलवा, हर्रा आदि पैसे के लालच में हम फल को पाने के लिये पेड़ को काट डालते हैं। महुआ बीनने, तेन्दु पत्ता तोडऩे जंगल में आग लगा देते हैं। जिसके कारण पुनर्जीवित होने वाला बीज, शिशु पौधा कई परिस्थितियों में बढ़ा पौधा सभी नष्ट हो जाता है। इसलिये हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिये। सभी ने कहा कि प्रकृति ने सभी फल फूल के लिये परिपक्व होने के लिये समय बनाया है। वह उसी समय परिपक्व होता है तभी हमें उसका उपयोग करना चाहिये। कार्यक्रम के अगले कड़ी में अलग-अलग गांवों से आई महिलाओं ने समूह में विभाजन होकर अलग-अलग विषय जैसे महुआ, चार, तेन्दुपत्ता, आम, इमली जैसे विषयों पर चर्चा की तथा उनसे जुड़े परंपराएं,उपयोग, परिपक्व होने का समय, उनसे मिलने वाली आय का खर्च आदि प्रमुख विषयों पर शानदार प्रस्तुति दी। यह बताया गया कि कौन सा फल कब फूल फल देता है। उसका क्या उपयोग है। कितना आय प्राप्त होता है। उससे कौन सी सामाजिक परंपरा क्या जुड़ी है और उसे कैसे हम बचा और बढडा सकते हैं। इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ग्राम पंचायत आमाकोनी सरपंच फुलेश्वरी मोंगरे, सरपंच प्रतिनिधि पंच महिला मुखिया नीलम ध्रुव, दुलारी खैरवार, फूलबाई, चंदा, कुसुम पटेल, विष्णुप्रिया ठाकुर, हीना साहू, राजेन्द्र साहू, प्रकाश आदि प्रमुख जनों का विशेष सहयोग रहा।

लघु वनोपज का संरक्षण-संवर्धन,  सामूहिक विपणन पर कार्यशाला
छत्तीसगढ़ संवाददाता महासमुंद,19 फरवरी। ग्राम पंचायत आमाकोनी में प्रेरक समिति महासमुंद यूनिट द्वारा लघु वनोपज का संरक्षण संवर्धन एवं सामूहिक विपणन पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम समन्वयक हेमलता राजपूत ने बताया कि इस कार्यक्रम में कुल 20 गांव से 58 महिलाओं ने भाग लिया। प्रशिक्षण में मुख्य रूप से यह बताया गया कि हम छग के गांवों में रहते हैं। जहां प्रकृति द्वारा प्रदत्त वनोपज वन संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यह नवोपज गांवों के आदिवासी परिवार से लेकर सभी अन्य समुदाय के लोगों के लिए साल भर में छह महीने के लिए आय का मुख्य स्रोत है। लेकिन कई बार हम अधिक पाने के चक्कर में पूरे पेड़ पौधे को पूरा नष्ट कर डालते हैं। यह आदत हमारे प्राकृतिक संसाधनों का विनाश कर देती है। इसका प्रभाव सभी क्षेत्रों में पड़ता है। कार्यक्रम में उपस्थित मास्टर ट्रेनर श्रीमती दीवान, मनोरंजन ने वन अधिकार अधिनियम 2005 द्वारा प्रदत्त अधिकार सामुदायिक वन अधिकार और सामुदायिक वन संसाधन के अधिकार के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। बताया कि यह सभी अधिकार कानूनी तौर पर सीएफआर दावा जमा करना, अधिकार लेना और अपने वन संपत्ति का संरक्षण संवर्धन समुदाय द्वारा किया जाना वर्णित है। ऐसे में हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा करें। कार्यक्रम में उपस्थित प्रेरक समिति प्रमुख रामगुलाल सिन्हा ने लघु वनोपज की कैसे संरक्षण संवर्धन और सामूहिक विपणन व्यवस्था पर कार्य करें इस पर विस्तारपूर्वक जानकारी दिया गया है कि वर्तमान सरकार एवं पूर्व सरकार द्वारा इस सभी पर सरकारी मूल्य भी तय किया गया और लोगों को अलग-अलग वन संपदा पर उसका मूल्य दे रहा है। अगली कड़ी में उन्हें बताया गया कि जंगलों से मिलने वाले फलों का समय से पहले तोडऩा मुख्य रूप से आगामी समय पेड़ों के विस्तार को रोकता है। जैसे आम, चार, भुंईआवला, तेन्दुफल, भेलवा, हर्रा आदि पैसे के लालच में हम फल को पाने के लिये पेड़ को काट डालते हैं। महुआ बीनने, तेन्दु पत्ता तोडऩे जंगल में आग लगा देते हैं। जिसके कारण पुनर्जीवित होने वाला बीज, शिशु पौधा कई परिस्थितियों में बढ़ा पौधा सभी नष्ट हो जाता है। इसलिये हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिये। सभी ने कहा कि प्रकृति ने सभी फल फूल के लिये परिपक्व होने के लिये समय बनाया है। वह उसी समय परिपक्व होता है तभी हमें उसका उपयोग करना चाहिये। कार्यक्रम के अगले कड़ी में अलग-अलग गांवों से आई महिलाओं ने समूह में विभाजन होकर अलग-अलग विषय जैसे महुआ, चार, तेन्दुपत्ता, आम, इमली जैसे विषयों पर चर्चा की तथा उनसे जुड़े परंपराएं,उपयोग, परिपक्व होने का समय, उनसे मिलने वाली आय का खर्च आदि प्रमुख विषयों पर शानदार प्रस्तुति दी। यह बताया गया कि कौन सा फल कब फूल फल देता है। उसका क्या उपयोग है। कितना आय प्राप्त होता है। उससे कौन सी सामाजिक परंपरा क्या जुड़ी है और उसे कैसे हम बचा और बढडा सकते हैं। इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ग्राम पंचायत आमाकोनी सरपंच फुलेश्वरी मोंगरे, सरपंच प्रतिनिधि पंच महिला मुखिया नीलम ध्रुव, दुलारी खैरवार, फूलबाई, चंदा, कुसुम पटेल, विष्णुप्रिया ठाकुर, हीना साहू, राजेन्द्र साहू, प्रकाश आदि प्रमुख जनों का विशेष सहयोग रहा।