2009 की घटना के बाद फोर्स का बढ़ा दबदबा
छत्तीसगढ़ संवाददाता
राजनांदगांव, 12 जुलाई। राजनांदगांव रेंंज के जिलों के जंगलों में 12 जुलाई 2009 की शहादत की घटना के बाद अब हालात काफी बदल गए हैं। रेंंज के सभी जिलों के भीतरी इलाकों में चप्पे-चप्पे पर घुसपैठ करने वाले नक्सलियों का वक्त अब खात्मे की ओर है।
नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षाबलों ने मोर्चा सम्हाल लिया है। मोहला-मानपुर से लेकर कवर्धा के सरहदी इलाकों में फोर्स ने नक्सलियों को दुबकने के लिए मजबूर कर दिया है। परिणामस्वरूप नक्सल आतंक से भयभीत लोगों को अब सुकून भरा और निडर होकर जीने का अवसर मिल रहा है। नक्सलियों ने राजनांदगांव जिले में जमकर उपद्रव मचाया था। नक्सल संगठन के हावी होने से पुलिस की दखल कमजोर थी।
12 जुलाई 2009 को एसपी स्व. विनोद चौबे समेत 29 जवानों की शहादत की घटना के बाद तेजी से केंद्र और राज्य ने संयुक्त रूप से नक्सलियों के खिलाफ सख्त रणनीति अपनाई। हालांकि बीते 16 साल में पुलिस को शहादत का दर्द भी झेलना पड़ा। मोहला-मानपुर क्षेत्र पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में रहा। इसी तरह राजनांदगांव, खैरागढ़ और कवर्धा में भी नक्सलियों ने अपनी जड़े मजबूत की थी। सिलसिलेवार सुरक्षा कैम्प खोलकर पुलिस ने नक्सलियों पर नकेल कसना शुरू किया। इसके अलावा नक्सलियों को ढेर करने में भी फोर्स ने महारत हासिल कर ली।
नक्सलियों से भिडऩे के लिए कांकेर के जंगलवार में जवानों को एक विशेष ट्रेनिंग के जरिये गोरिल्ला वार में दक्ष बनाया गया। जिसके अब परिणाम बेहतर तरीके से सामने आए हैं। 16 साल में नक्सलियों के साथ लंबी मुठभेड़ हुई। एक जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के एक बड़े कैडर को मिलाकर पुलिस ने 30 से ज्यादा माओवादियों को मार गिराया। पुलिस ने रणनीतिपूर्वक कार्रवाई करते घर वापसी का अभियान भी चलाया।
2009 की घटना के बाद फोर्स का बढ़ा दबदबा
छत्तीसगढ़ संवाददाता
राजनांदगांव, 12 जुलाई। राजनांदगांव रेंंज के जिलों के जंगलों में 12 जुलाई 2009 की शहादत की घटना के बाद अब हालात काफी बदल गए हैं। रेंंज के सभी जिलों के भीतरी इलाकों में चप्पे-चप्पे पर घुसपैठ करने वाले नक्सलियों का वक्त अब खात्मे की ओर है।
नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षाबलों ने मोर्चा सम्हाल लिया है। मोहला-मानपुर से लेकर कवर्धा के सरहदी इलाकों में फोर्स ने नक्सलियों को दुबकने के लिए मजबूर कर दिया है। परिणामस्वरूप नक्सल आतंक से भयभीत लोगों को अब सुकून भरा और निडर होकर जीने का अवसर मिल रहा है। नक्सलियों ने राजनांदगांव जिले में जमकर उपद्रव मचाया था। नक्सल संगठन के हावी होने से पुलिस की दखल कमजोर थी।
12 जुलाई 2009 को एसपी स्व. विनोद चौबे समेत 29 जवानों की शहादत की घटना के बाद तेजी से केंद्र और राज्य ने संयुक्त रूप से नक्सलियों के खिलाफ सख्त रणनीति अपनाई। हालांकि बीते 16 साल में पुलिस को शहादत का दर्द भी झेलना पड़ा। मोहला-मानपुर क्षेत्र पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में रहा। इसी तरह राजनांदगांव, खैरागढ़ और कवर्धा में भी नक्सलियों ने अपनी जड़े मजबूत की थी। सिलसिलेवार सुरक्षा कैम्प खोलकर पुलिस ने नक्सलियों पर नकेल कसना शुरू किया। इसके अलावा नक्सलियों को ढेर करने में भी फोर्स ने महारत हासिल कर ली।
नक्सलियों से भिडऩे के लिए कांकेर के जंगलवार में जवानों को एक विशेष ट्रेनिंग के जरिये गोरिल्ला वार में दक्ष बनाया गया। जिसके अब परिणाम बेहतर तरीके से सामने आए हैं। 16 साल में नक्सलियों के साथ लंबी मुठभेड़ हुई। एक जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के एक बड़े कैडर को मिलाकर पुलिस ने 30 से ज्यादा माओवादियों को मार गिराया। पुलिस ने रणनीतिपूर्वक कार्रवाई करते घर वापसी का अभियान भी चलाया।