करवा चौथ की तरह सिंधी समाज ने मनाया तीजड़ी पर्व:पति की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत, ज्वारे लेकर झूले पर बैठी

करवा चौथ की तरह गुरुवार को सिंधी समाज की महिलाओं ने निर्जला व्रत रखा और पति की दीर्घायु की कामना कर तीजड़ी माता की पूजा-आराधना की। सोलह श्रृंगार कर मंदिर पहुंची महिलाओं ने तीजड़ी माता को झूला भी झुलाया और शाम को चंद्रदेव को अर्ध्य देकर व्रत खोला। पूजा में अविवाहित कन्याएं भी शामिल हुई, जिन्होंने सुयोग्य वर के लिए प्रार्थना की। गुरुवार को सिंधी समाज की महिलाओं ने अलसुबह से ही स्नान कर पूजा की तैयारियां शुरू कर दी थीं। इस मौके पर महिलाएं हाथों में मेहंदी लगाकर और सोलह श्रृंगार करके मंदिर पहुंची, जहां गोद में ज्वारे रख झूला झूला। शाम को सभी कथा में शामिल हुईं। पूजन का सिलसिला शाम 4 बजे से शुरू हो गया था। इसके बाद रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद निर्जला उपवास खोला गया। संत हिरदाराम नगर के पंडित जय कुमार शर्मा बताते हैं कि यह व्रत माता पार्वती ने भी रखा था। वे बताते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई में भगवान शिव से संबंधित अवशेष मिले थे, सिंधी तब से भगवान शिव की आराधना करते आ रहे हैं। तीजड़ी पर्व सिंधी संस्कृति का हिस्सा है। प्राचीन परम्पराओं का निर्वहन करते हुए इस त्योहार को आज भी उत्साह से मनाने का कारण नई पीढ़ी को अपनी परंपरा, रीति रिवाज, सनातन ओर सिंधी संस्कृति से रुबरू कराना है।

करवा चौथ की तरह सिंधी समाज ने मनाया तीजड़ी पर्व:पति की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत, ज्वारे लेकर झूले पर बैठी
करवा चौथ की तरह गुरुवार को सिंधी समाज की महिलाओं ने निर्जला व्रत रखा और पति की दीर्घायु की कामना कर तीजड़ी माता की पूजा-आराधना की। सोलह श्रृंगार कर मंदिर पहुंची महिलाओं ने तीजड़ी माता को झूला भी झुलाया और शाम को चंद्रदेव को अर्ध्य देकर व्रत खोला। पूजा में अविवाहित कन्याएं भी शामिल हुई, जिन्होंने सुयोग्य वर के लिए प्रार्थना की। गुरुवार को सिंधी समाज की महिलाओं ने अलसुबह से ही स्नान कर पूजा की तैयारियां शुरू कर दी थीं। इस मौके पर महिलाएं हाथों में मेहंदी लगाकर और सोलह श्रृंगार करके मंदिर पहुंची, जहां गोद में ज्वारे रख झूला झूला। शाम को सभी कथा में शामिल हुईं। पूजन का सिलसिला शाम 4 बजे से शुरू हो गया था। इसके बाद रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद निर्जला उपवास खोला गया। संत हिरदाराम नगर के पंडित जय कुमार शर्मा बताते हैं कि यह व्रत माता पार्वती ने भी रखा था। वे बताते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई में भगवान शिव से संबंधित अवशेष मिले थे, सिंधी तब से भगवान शिव की आराधना करते आ रहे हैं। तीजड़ी पर्व सिंधी संस्कृति का हिस्सा है। प्राचीन परम्पराओं का निर्वहन करते हुए इस त्योहार को आज भी उत्साह से मनाने का कारण नई पीढ़ी को अपनी परंपरा, रीति रिवाज, सनातन ओर सिंधी संस्कृति से रुबरू कराना है।