मास्‍टर की कुर्सी पर खुद बैठे, ब्‍लैकबोर्ड पर गलती सुधारी:टीचर देर से आते तो गाना गाकर विरोध किया, सरदार पटेल के छात्र जीवन के किस्‍से

आज देशभर में एकता दिवस मनाया जा रहा है। भारत सरकार ने साल 2014 में इस दिन की शुरुआत सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन के मौके पे की थी। सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ के नाम से जाना जाता है। आज सरदार पटेल के जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनके छात्र जीवन से जुड़े कुछ अनकहे किस्सों के बारे में। क्लास में लेट आने वाले टीचर को सबक सिखाया एक दिन वल्लभ भाई पटेल क्लास में बैठे हुए थे। पूरी क्लास टीचर का इंतजार कर रही थी। तभी एक बच्चा उठकर बोला, ‘अग्रवाल सर आज फिर लेट हैं।’ एक दूसरे लड़के ने कहा, ‘उनके आने तक क्या करें?’ इस पर वल्लभभाई ने सुझाया ‘क्यों न उनके आने तक गाना गाया जाए। मुझे लगता है आसपास की क्लासेज को डिस्टर्ब करने से बेहतर है कि हम लोग गाना गाकर टाइमपास करें।’ कुछ देर बाद जब अग्रवाल सर क्लास में आए तो वो क्लास का नजारा देखकर गुस्से में चिल्लाए, ‘तुम लोगों को गाना गाने की इजाजत किसने दी? ये कोई म्यूजिक क्लास नजर आती है?’ इसपर वल्लभ भाई पटेल उठे और दृढ़ता से जवाब दिया, ‘नहीं सर, हम जानते हैं यह इंग्लिश क्लास है। लेकिन आपके आने तक गाना गाने की बजाय हल्ला करते तो क्या सही होता?’ यह सुनकर टीचर और गुस्सा हो गए और बोले, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह बात करने की। मेरी क्लास से फौरन निकल जाओ।’ वल्लभभाई चुपचाप उठे और अपनी किताबें समेटने लगे। क्लास से निकलते हुए उन्होंने बाकी स्टूडेंट्स की ओर देखा। ये क्लास के लिए इशारा था। इसके बाद सभी स्टूडेंट्स उठे और वल्लभभाई के साथ क्लास के बाहर निकल गए। अग्रवाल टीचर कुछ नहीं कर सके। इसके बाद वल्लभभाई को प्रिंसिपल HM भरुचा के पास भेजा गया। प्रिंसिपल ने डांटते हुए कहा, ‘अग्रवाल सर बता रहे हैं कि तुमने उनसे बदतमीजी से बात की। क्लास के सभी लड़कों को क्लास से निकल जाने के लिए भड़काया भी।’ पटेल ने कहा, ‘सर, अग्रवाल सर क्लास में कभी समय से नहीं आते। इसलिए हमने फैसला किया कि जब तक वो आए हम हल्ला करके दूसरी क्लासेज को डिस्टर्ब करने की बजाय गाना गाएं।’ प्रिंसिपल भरुचा से आजतक किसी ने इस तरह बात नहीं की थी। उन्हें यह भी समझ आ गया था कि वल्लभ भाई का तर्क सही है। मगर एक प्रिंसिपल होने के नाते स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच स्टूडेंट्स का साथ नहीं दे सकते थे। ऐसे में उन्होंने कहा, ‘वल्लभ, मैं चाहता हूं तुम अग्रवाल सर से माफी मांगो।’ वल्लभ ने कहा, ‘सर, अग्रवाल सर को क्लास में हर दिन देरी से आने और हमें बेवजह डांटने के लिए माफी मांगनी चाहिए। हमने कुछ गलत नहीं किया है।’ प्रिंसिपल भरुचा समझ चुके थे कि वल्लभ अपनी जगह ठीक है। इसलिए उन्हें केवल एक वॉर्निंग देकर छोड़ दिया। इस समय वे केवल 6वीं क्‍लास में थे। क्रांतिकारी व्यवहार के चलते बदलना पड़ा स्कूल बरोड़ा गवर्नमेंट हाई स्कूल में भी सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यवहार क्रांतिकारी ही रहा। एक दिन क्लास में टीचर एलजेब्रा की प्रॉब्लम सॉल्व करते हुए अटक गए। कुछ देर बाद टीचर ने प्रॉब्लम सॉल्व किए लेकिन वह गलत थी। इसपर वल्लभ खड़े हुए और बोले, ‘सर, प्रॉब्लम सॉल्व करने का यह तरीका सही नहीं है।’ टीचर ने तंज कसते हुए कहा, ‘अच्छा मास्टरजी, ऐसा है क्या? क्यों न तुम यहां आकर यह प्रॉब्लम सॉल्व करो और एक काम क्यों नहीं करते, मेरी कुर्सी पर भी बैठ जाओ?’ यह सुनकर वल्लभ उठे और ब्लैकबोर्ड पर जाकर प्रॉब्लम सही तरीके से सॉल्व कर दी। इसके बाद वो टीचर की कुर्सी पर भी बैठ गए। मैथ्स के टीचर यह देखकर नाराज हो गए और वल्लभ को सीधा प्रिंसिपल नरवने के पास ले गए। प्रिंसिपल ने कहा, ‘तुमने ऐसा क्यों किया?’ वल्लभ ने जवाब दिया, ‘सर मैंने तो मास्टरजी की आज्ञा का ही पालन किया था। उन्होंने ही मुझे कहा कि ब्लैकबोर्ड पर प्रॉब्लम सॉल्व करो और उनकी कुर्सी पर बैठ जाओ।’ इससे पहले भी प्रिंसिपल नरवने के पास वल्लभ भाई की कई शिकायतें आ चुकी थीं। प्रिंसिपल अब तक उनसे परेशान हो चुके थे। उन्होंने वल्लभ को स्कूल से निकालने का फैसला कर लिया था। लेकिन इससे पहले वो उन्हें स्कूल से निकालते, वल्लभ भाई ने ही स्कूल छोड़ दिया। भ्रष्ट टीचर के खिलाफ किया प्रोटेस्ट इसके बाद वल्लभ ने नादियाड़ के स्कूल में एडमिशन ले लिया। इस स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर स्कूल के बाहर स्टेशनरी के सामान का काम करते थे। वो स्कूल के बच्चों को उनकी दुकान से महंगे दामों पर सामान खरीदने को बाध्य करते। एक दिन वल्लभ क्लास के दूसरे बच्चों से पूछने लगे, ‘हम स्टेशनरी की चीजों के लिए ज्यादा पैसा आखिर क्यों दें?’ इसपर क्लास के लड़कों ने कहा, ‘वो हमें उनकी दुकान से खरीदने को मजबूर करते हैं। हम इसमें क्या ही कर सकते हैं?’ वल्लभ ने कहा, ‘हमें इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी, प्रदर्शन करना होगा।’ इसके बाद वल्लभ भाई ने स्कूल के दूसरे स्टूडेंट्स को टीचर के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया। स्टूडेंट्स ने सभी टीचर्स की क्लासेज में जाना बंद कर दिया। करीब एक हफ्ते के बाद स्कूल के प्रिंसिपल स्टूडेंट्स से मिले और टीचर की हरकतों को रुकवाने का वादा किया। इसके बाद स्कूल में पहले की तरह क्लासेज चलने लगीं। टीचर के लिए चुनाव प्रचार कर जिताया एक बार वल्लभ भाई के टीचर चीनूभाई नादियाड़ के म्यूनिसिपल इलेक्शन में खड़े हुए। दूसरा कैंडिडेट्स वहीं का एक अमीर बनिया था जिसका नाम था बाबूभाई। बाबूभाई खुलकर चीनूभाई की बेइज्जी करता। बार-बार चीनूभाई को ललकारता और कहता कि उनकी हिम्मत कैसे हुई उसके सामने खड़े होने की। एक दिन बाबूभाई ने टीचर चीनूभाई से कहा, ‘मास्टर, अपना नाम वापस ले ले। तेरे पास प्रचार करने तक का तो पैसा है नहीं, जीतेगा क्या खाक।’ चीनूभाई सौम्य मिजाज के व्यक्ति थे। बाबूभाई की हरकतों के बाद वो शायद अपना नाम वापस ले लेते लेकिन वल्लभ भाई ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। वल्लभ अपने दोस्तों के साथ एक दिन टीचर के पास गए और बोले, ‘आपके लिए हम प्रचार करेंगे सर, आप चिंता मत करिए।’ इसके बाद टीचर ने इलेक्शन से अपना नाम वापस लेने का फैसला टाल दिया और जोर-शोर से चुनाव की तैयारी मे

मास्‍टर की कुर्सी पर खुद बैठे, ब्‍लैकबोर्ड पर गलती सुधारी:टीचर देर से आते तो गाना गाकर विरोध किया, सरदार पटेल के छात्र जीवन के किस्‍से
आज देशभर में एकता दिवस मनाया जा रहा है। भारत सरकार ने साल 2014 में इस दिन की शुरुआत सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन के मौके पे की थी। सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ के नाम से जाना जाता है। आज सरदार पटेल के जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनके छात्र जीवन से जुड़े कुछ अनकहे किस्सों के बारे में। क्लास में लेट आने वाले टीचर को सबक सिखाया एक दिन वल्लभ भाई पटेल क्लास में बैठे हुए थे। पूरी क्लास टीचर का इंतजार कर रही थी। तभी एक बच्चा उठकर बोला, ‘अग्रवाल सर आज फिर लेट हैं।’ एक दूसरे लड़के ने कहा, ‘उनके आने तक क्या करें?’ इस पर वल्लभभाई ने सुझाया ‘क्यों न उनके आने तक गाना गाया जाए। मुझे लगता है आसपास की क्लासेज को डिस्टर्ब करने से बेहतर है कि हम लोग गाना गाकर टाइमपास करें।’ कुछ देर बाद जब अग्रवाल सर क्लास में आए तो वो क्लास का नजारा देखकर गुस्से में चिल्लाए, ‘तुम लोगों को गाना गाने की इजाजत किसने दी? ये कोई म्यूजिक क्लास नजर आती है?’ इसपर वल्लभ भाई पटेल उठे और दृढ़ता से जवाब दिया, ‘नहीं सर, हम जानते हैं यह इंग्लिश क्लास है। लेकिन आपके आने तक गाना गाने की बजाय हल्ला करते तो क्या सही होता?’ यह सुनकर टीचर और गुस्सा हो गए और बोले, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह बात करने की। मेरी क्लास से फौरन निकल जाओ।’ वल्लभभाई चुपचाप उठे और अपनी किताबें समेटने लगे। क्लास से निकलते हुए उन्होंने बाकी स्टूडेंट्स की ओर देखा। ये क्लास के लिए इशारा था। इसके बाद सभी स्टूडेंट्स उठे और वल्लभभाई के साथ क्लास के बाहर निकल गए। अग्रवाल टीचर कुछ नहीं कर सके। इसके बाद वल्लभभाई को प्रिंसिपल HM भरुचा के पास भेजा गया। प्रिंसिपल ने डांटते हुए कहा, ‘अग्रवाल सर बता रहे हैं कि तुमने उनसे बदतमीजी से बात की। क्लास के सभी लड़कों को क्लास से निकल जाने के लिए भड़काया भी।’ पटेल ने कहा, ‘सर, अग्रवाल सर क्लास में कभी समय से नहीं आते। इसलिए हमने फैसला किया कि जब तक वो आए हम हल्ला करके दूसरी क्लासेज को डिस्टर्ब करने की बजाय गाना गाएं।’ प्रिंसिपल भरुचा से आजतक किसी ने इस तरह बात नहीं की थी। उन्हें यह भी समझ आ गया था कि वल्लभ भाई का तर्क सही है। मगर एक प्रिंसिपल होने के नाते स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच स्टूडेंट्स का साथ नहीं दे सकते थे। ऐसे में उन्होंने कहा, ‘वल्लभ, मैं चाहता हूं तुम अग्रवाल सर से माफी मांगो।’ वल्लभ ने कहा, ‘सर, अग्रवाल सर को क्लास में हर दिन देरी से आने और हमें बेवजह डांटने के लिए माफी मांगनी चाहिए। हमने कुछ गलत नहीं किया है।’ प्रिंसिपल भरुचा समझ चुके थे कि वल्लभ अपनी जगह ठीक है। इसलिए उन्हें केवल एक वॉर्निंग देकर छोड़ दिया। इस समय वे केवल 6वीं क्‍लास में थे। क्रांतिकारी व्यवहार के चलते बदलना पड़ा स्कूल बरोड़ा गवर्नमेंट हाई स्कूल में भी सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यवहार क्रांतिकारी ही रहा। एक दिन क्लास में टीचर एलजेब्रा की प्रॉब्लम सॉल्व करते हुए अटक गए। कुछ देर बाद टीचर ने प्रॉब्लम सॉल्व किए लेकिन वह गलत थी। इसपर वल्लभ खड़े हुए और बोले, ‘सर, प्रॉब्लम सॉल्व करने का यह तरीका सही नहीं है।’ टीचर ने तंज कसते हुए कहा, ‘अच्छा मास्टरजी, ऐसा है क्या? क्यों न तुम यहां आकर यह प्रॉब्लम सॉल्व करो और एक काम क्यों नहीं करते, मेरी कुर्सी पर भी बैठ जाओ?’ यह सुनकर वल्लभ उठे और ब्लैकबोर्ड पर जाकर प्रॉब्लम सही तरीके से सॉल्व कर दी। इसके बाद वो टीचर की कुर्सी पर भी बैठ गए। मैथ्स के टीचर यह देखकर नाराज हो गए और वल्लभ को सीधा प्रिंसिपल नरवने के पास ले गए। प्रिंसिपल ने कहा, ‘तुमने ऐसा क्यों किया?’ वल्लभ ने जवाब दिया, ‘सर मैंने तो मास्टरजी की आज्ञा का ही पालन किया था। उन्होंने ही मुझे कहा कि ब्लैकबोर्ड पर प्रॉब्लम सॉल्व करो और उनकी कुर्सी पर बैठ जाओ।’ इससे पहले भी प्रिंसिपल नरवने के पास वल्लभ भाई की कई शिकायतें आ चुकी थीं। प्रिंसिपल अब तक उनसे परेशान हो चुके थे। उन्होंने वल्लभ को स्कूल से निकालने का फैसला कर लिया था। लेकिन इससे पहले वो उन्हें स्कूल से निकालते, वल्लभ भाई ने ही स्कूल छोड़ दिया। भ्रष्ट टीचर के खिलाफ किया प्रोटेस्ट इसके बाद वल्लभ ने नादियाड़ के स्कूल में एडमिशन ले लिया। इस स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर स्कूल के बाहर स्टेशनरी के सामान का काम करते थे। वो स्कूल के बच्चों को उनकी दुकान से महंगे दामों पर सामान खरीदने को बाध्य करते। एक दिन वल्लभ क्लास के दूसरे बच्चों से पूछने लगे, ‘हम स्टेशनरी की चीजों के लिए ज्यादा पैसा आखिर क्यों दें?’ इसपर क्लास के लड़कों ने कहा, ‘वो हमें उनकी दुकान से खरीदने को मजबूर करते हैं। हम इसमें क्या ही कर सकते हैं?’ वल्लभ ने कहा, ‘हमें इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी होगी, प्रदर्शन करना होगा।’ इसके बाद वल्लभ भाई ने स्कूल के दूसरे स्टूडेंट्स को टीचर के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया। स्टूडेंट्स ने सभी टीचर्स की क्लासेज में जाना बंद कर दिया। करीब एक हफ्ते के बाद स्कूल के प्रिंसिपल स्टूडेंट्स से मिले और टीचर की हरकतों को रुकवाने का वादा किया। इसके बाद स्कूल में पहले की तरह क्लासेज चलने लगीं। टीचर के लिए चुनाव प्रचार कर जिताया एक बार वल्लभ भाई के टीचर चीनूभाई नादियाड़ के म्यूनिसिपल इलेक्शन में खड़े हुए। दूसरा कैंडिडेट्स वहीं का एक अमीर बनिया था जिसका नाम था बाबूभाई। बाबूभाई खुलकर चीनूभाई की बेइज्जी करता। बार-बार चीनूभाई को ललकारता और कहता कि उनकी हिम्मत कैसे हुई उसके सामने खड़े होने की। एक दिन बाबूभाई ने टीचर चीनूभाई से कहा, ‘मास्टर, अपना नाम वापस ले ले। तेरे पास प्रचार करने तक का तो पैसा है नहीं, जीतेगा क्या खाक।’ चीनूभाई सौम्य मिजाज के व्यक्ति थे। बाबूभाई की हरकतों के बाद वो शायद अपना नाम वापस ले लेते लेकिन वल्लभ भाई ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। वल्लभ अपने दोस्तों के साथ एक दिन टीचर के पास गए और बोले, ‘आपके लिए हम प्रचार करेंगे सर, आप चिंता मत करिए।’ इसके बाद टीचर ने इलेक्शन से अपना नाम वापस लेने का फैसला टाल दिया और जोर-शोर से चुनाव की तैयारी में जुट गए। यह देखकर बनिया बाबूलाल बोला, ‘अच्छा नाम वापस नहीं लेता। चल एक शर्त लगाते हैं। हारने वाले को अपनी मूंछें मुंडवानी होंगी।’ यह सुनकर वल्लभ भाई अपने दोस्तों के साथ बाबूलाल के घर पहुंचे और बोले, ‘अपने टीचर की जगह मैं तुम्हारी शर्त स्वीकार करता हूं।’ इसके बाद वल्लभ भाई ने स्कूल के स्टूडेंट्स को जमा किया और उनसे कहा, ‘हमारे स्कूल की इज्जत को चैलेंज किया गया है। हमें अब अपने टीचर की जीत के लिए काम करना है। हमें उनकी जीत के लिए दिन-रात एक करनी होगी।’ इसके बाद सभी स्टूडेंट्स टीचर के लिए प्रचार करने में जुट गए। उन्होंने घर-घर जाकर टीचर के लिए वोट डालने की अपील की। स्टूडेंट्स की अपील से नादियाड़ के लोग काफी खुश हुए। सभी ने टीचर को वोट किया और उनकी जीत हुई। इलेक्शन के नतीजों की घोषणा होते ही वल्लभ भाई बनिया बाबूभाई के घर पहुंच गए। उनके साथ स्कूल के दूसरे साथी और पड़ोस का एक नाई भी था। बाबूभाई को घर से बाहर बुलाया गया और उसकी मूंछें हटा दी गईं। बिना ट्यूशन के लॉ की डिग्री हासिल की वल्लभ भाई बैरिस्टर बनना चाहते थे। इसके लिए उन्हें इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करनी थी लेकिन उनका परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें पढ़ने के लिए विदेश भेज सकें। उनके पास कॉलेज जाने जितने भी पैसे नहीं थे। ऐसे में वल्लभ भाई ने प्राइवेट ही लॉ की डिग्री हासिल की। सरदार पटेल के भाई विट्ठलभाई पटेल भी वकील थे। उन्होंने एग्जाम देने के पहले कोचिंग क्लासेज जॉइन की थी। लेकिन वल्लभ भाई ने कोचिंग क्लासेज भी जॉइन नहीं की थी। उन्होंने दूसरे वकील से किताबें उधार लेकर पढ़ाई की। इसके अलावा वल्लभ भाई कोर्ट्स जाकर वकीलों को बहस करते हुए सुना करते थे। इस तरह वल्लभ भाई ने वकालत की पढ़ाई की और सभी एग्जाम पास किए। इसके बाद 1910 में 35 साल की उम्र में वल्लभ भाई बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए और 1913 में भारत लौट आए। रेफरेंस: गुजरात टेक्निकल यूनिवर्सिटी (GTU) का शोधपत्र अनंत्‍यम ----------------------------- ऐसी ही और खबरें पढ़ें.... 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