इंदौर में सानंद के मंच पर प्रस्तुति:मराठी नाटक 'नकळत सारे घडले' ने अनेक सामाजिक पहलुओं को किया स्पर्श
इंदौर में सानंद के मंच पर प्रस्तुति:मराठी नाटक 'नकळत सारे घडले' ने अनेक सामाजिक पहलुओं को किया स्पर्श
संवेदनशील विषय का माइल स्टोन नाटक 'नकळत सारे घडले' का मंचन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में शुक्रवार शाम से प्रारंभ हुआ। सुप्रसिद्ध दिग्दर्शक विजय केकरे ने लेखक शेखर ढवळीकर की विषय वस्तु को आधुनिक संर्दभों के साथ प्रभावी प्रस्तुत किया है। मुख्य भूमिका निभा रहे आनंद इंगळे मराठी सिनेमा, धारावाहिक एवं रंगमंच पर अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी अभिनय शैली से उन्होंने अपना एक स्नेही दर्शक वर्ग तैयार किया है। नाटक की मुख्य अदाकारा श्वेता पेंडसे, लेखिका एवं अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। आनंद इंगळे और श्वेता पेंडसे ने नाटक में कमाल का अभिनय किया है। इनका साथ प्रशांत केनी, तनिषा वर्दे ने बखूबी निभाया है। दो पीढ़ियों के बीच विचारों का तनाव और जेनरेशन गैप का विषय काफी पुराना है। युवा और पारंपरिक्व पीढ़ी के बीच उलझी विचारों की गुत्थी को सुलझाने का गंभीर मानस शास्त्रीय प्रयास नाटक में किया गया है। 25 वर्ष पूर्व इस विक्रम गोखले, स्वाति चिटणीस जैसे दिग्गज कलाकारों ने इस नाटक को खेला था। दर्जेदार विषय एवं बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए माइल स्टोन नाटक का खिताब दर्शकों द्वारा दिया गया है। सम सामायिक परिवर्तन करते हुए इस बार की प्रस्तुति में अनेक कल्पनाशील प्रयोग किए गए हैं। इसके लिए दिग्दर्शक विजय केकरे की प्रशंसा करनी होगी। उन्होंने बहुत कुशलता से सामाजिक सरोकारों वाली पटकथा को दर्शकों के हृदय में उतरने में सफलता प्राप्त की है। नाटक में अनेक दिलचस्प प्रसंग हैं, जो रसिक प्रेक्षकों को गुदगुदाते भी हैं और सोचने पर भी मजबूर करते हैं। लेखक शेखर ढवळीकर की पटकथा और संवादों की भी प्रशंसा करनी पड़ेगी। नेपथ्यकार राजन भिसे, संगीत दिग्दर्शक अशोक पत्की, प्रकाश योजनाकार शीतल तळपदे ने भी अपने क्रिएशंस से भरपूर दाद हासिल की। सानंद न्यास के अध्यक्ष जयंत भिसे और मानद सचिव संजीव वावीकर ने बताया कि नाटक 'नकळत सारे घडले' का मंचन 9 नवम्बर को रामुभैय्या दाते समूह के लिये अपराह्न 4 बजे, सायं. 7.30 बजे राहुल बारपुते समूह के लिए 10 नवम्बर को वसंत समूह के लिए अपराह्न 4 बजे तथा सायं 7.30 बजे बहार समूह के लिए होगा। कहानी कहानी में चार पात्र हैं। राहुल (प्रशांत केनी) को सिनेमा में अभिनय करने की इच्छा है। इसके लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार है। उसकी मित्र मोनिका (तनीषा वर्दे) इसमें उसकी मदद करती है। एक अवसर पर अभिनेत्री करिश्मा कपूर राहुल के अभिनय की प्रशंसा करती है। इससे राहुल में फिल्मों में काम करने का जुनून सवार हो जाता है। राहुल के माता-पिता दुबई में है। इसलिए बचपन से उसे उसके बटू मामा (आनंद इंगळे) ने पाला है। राहुल का मामा काफी ग़रीबी में पढ़ा है। उसने संघर्ष कर अपना आर्थिक संसार खड़ा किया है। इसलिए उसका अपना माइंड सेट है। बटू मामा की इच्छा है कि पहले राहुल एमबीए की पढ़ाई पूरी करें कॅरियर बनाएं और फिर शौकिया तौर पर अभिनय करेंज, बकि राहुल को लगता है कि बटू मामा उसकी कला और उसकी प्रतिभा को समझ नहीं पा रहा है। जाहिर है दोनों में जेनरेशन गैप और विचारों का अंतर है। बटू मामा और राहुल के बीच के जेनरेशन गैप और उससे उपजे तनाव को कम करने के लिए मोनिका अपनी भाभी डॉक्टर मीरा (श्वेता पेंडसे) की मदद लेती है। अब मीरा किस तरह के मनोचिकित्सकीय प्रयोग करती है और दोनों के बीच की वैचारिक दूरी को कम करती है। नाटक इसी सूत्र को पकड़ कर आगे बढ़ता है। बैकस्टेज आर्टिस्ट्स दिग्दर्शक- विजय केंकरे लेखक - शेखर ढवळीकर नेपथ्य- राजन भिसे, संगीत दिग्दर्शक- अशोक पत्की प्रकाश योजना- शीतल तळपदे वेशभूषा- मंगल केकरे रंगभूषा- अभय मोहिते, व्यवस्थापक-कल्पेश बाविस्कर सूत्रधार- दीपक जोशी निमति- राहुल पेठे, नितीन भालचंद्र नाइक
संवेदनशील विषय का माइल स्टोन नाटक 'नकळत सारे घडले' का मंचन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में शुक्रवार शाम से प्रारंभ हुआ। सुप्रसिद्ध दिग्दर्शक विजय केकरे ने लेखक शेखर ढवळीकर की विषय वस्तु को आधुनिक संर्दभों के साथ प्रभावी प्रस्तुत किया है। मुख्य भूमिका निभा रहे आनंद इंगळे मराठी सिनेमा, धारावाहिक एवं रंगमंच पर अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी अभिनय शैली से उन्होंने अपना एक स्नेही दर्शक वर्ग तैयार किया है। नाटक की मुख्य अदाकारा श्वेता पेंडसे, लेखिका एवं अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। आनंद इंगळे और श्वेता पेंडसे ने नाटक में कमाल का अभिनय किया है। इनका साथ प्रशांत केनी, तनिषा वर्दे ने बखूबी निभाया है। दो पीढ़ियों के बीच विचारों का तनाव और जेनरेशन गैप का विषय काफी पुराना है। युवा और पारंपरिक्व पीढ़ी के बीच उलझी विचारों की गुत्थी को सुलझाने का गंभीर मानस शास्त्रीय प्रयास नाटक में किया गया है। 25 वर्ष पूर्व इस विक्रम गोखले, स्वाति चिटणीस जैसे दिग्गज कलाकारों ने इस नाटक को खेला था। दर्जेदार विषय एवं बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए माइल स्टोन नाटक का खिताब दर्शकों द्वारा दिया गया है। सम सामायिक परिवर्तन करते हुए इस बार की प्रस्तुति में अनेक कल्पनाशील प्रयोग किए गए हैं। इसके लिए दिग्दर्शक विजय केकरे की प्रशंसा करनी होगी। उन्होंने बहुत कुशलता से सामाजिक सरोकारों वाली पटकथा को दर्शकों के हृदय में उतरने में सफलता प्राप्त की है। नाटक में अनेक दिलचस्प प्रसंग हैं, जो रसिक प्रेक्षकों को गुदगुदाते भी हैं और सोचने पर भी मजबूर करते हैं। लेखक शेखर ढवळीकर की पटकथा और संवादों की भी प्रशंसा करनी पड़ेगी। नेपथ्यकार राजन भिसे, संगीत दिग्दर्शक अशोक पत्की, प्रकाश योजनाकार शीतल तळपदे ने भी अपने क्रिएशंस से भरपूर दाद हासिल की। सानंद न्यास के अध्यक्ष जयंत भिसे और मानद सचिव संजीव वावीकर ने बताया कि नाटक 'नकळत सारे घडले' का मंचन 9 नवम्बर को रामुभैय्या दाते समूह के लिये अपराह्न 4 बजे, सायं. 7.30 बजे राहुल बारपुते समूह के लिए 10 नवम्बर को वसंत समूह के लिए अपराह्न 4 बजे तथा सायं 7.30 बजे बहार समूह के लिए होगा। कहानी कहानी में चार पात्र हैं। राहुल (प्रशांत केनी) को सिनेमा में अभिनय करने की इच्छा है। इसके लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार है। उसकी मित्र मोनिका (तनीषा वर्दे) इसमें उसकी मदद करती है। एक अवसर पर अभिनेत्री करिश्मा कपूर राहुल के अभिनय की प्रशंसा करती है। इससे राहुल में फिल्मों में काम करने का जुनून सवार हो जाता है। राहुल के माता-पिता दुबई में है। इसलिए बचपन से उसे उसके बटू मामा (आनंद इंगळे) ने पाला है। राहुल का मामा काफी ग़रीबी में पढ़ा है। उसने संघर्ष कर अपना आर्थिक संसार खड़ा किया है। इसलिए उसका अपना माइंड सेट है। बटू मामा की इच्छा है कि पहले राहुल एमबीए की पढ़ाई पूरी करें कॅरियर बनाएं और फिर शौकिया तौर पर अभिनय करेंज, बकि राहुल को लगता है कि बटू मामा उसकी कला और उसकी प्रतिभा को समझ नहीं पा रहा है। जाहिर है दोनों में जेनरेशन गैप और विचारों का अंतर है। बटू मामा और राहुल के बीच के जेनरेशन गैप और उससे उपजे तनाव को कम करने के लिए मोनिका अपनी भाभी डॉक्टर मीरा (श्वेता पेंडसे) की मदद लेती है। अब मीरा किस तरह के मनोचिकित्सकीय प्रयोग करती है और दोनों के बीच की वैचारिक दूरी को कम करती है। नाटक इसी सूत्र को पकड़ कर आगे बढ़ता है। बैकस्टेज आर्टिस्ट्स दिग्दर्शक- विजय केंकरे लेखक - शेखर ढवळीकर नेपथ्य- राजन भिसे, संगीत दिग्दर्शक- अशोक पत्की प्रकाश योजना- शीतल तळपदे वेशभूषा- मंगल केकरे रंगभूषा- अभय मोहिते, व्यवस्थापक-कल्पेश बाविस्कर सूत्रधार- दीपक जोशी निमति- राहुल पेठे, नितीन भालचंद्र नाइक